Monday, 30 March 2015

अमर सिंह राठौड़


राजस्थान की इस धरती पर वीर तो अनेक हुये है - प्रथ्वीराज,महाराणा सांगा,महाराणा प्रताप,दुर्गादास राठौड़, जयमल मेडतिया आदि पर अमर सिंह राठौड़ की वीरता एक विशिष्ट थी,उनमें शौर्य,पराक्रम की पराकाष्ठा के साथ रोमांच के तत्व विधमान थे | उसने अपनी आन-बान के लिए ३१ वर्ष की आयु में ही अपनी इहलीला समाप्त कर ली |
आत्म-सम्मान की रक्षार्थ मरने की इस घटना को जन-जन का समर्थन मिला| सभी ने अमर सिंह के शौर्य की सराहना की| साहित्यकारों को एक खजाना मिल गया| रचनाधारियों के अलावा कलाकारों ने एक ओर जहाँ कटपुतली का मंचन कर अमर सिंह की जीवन गाथा को जन-जन प्रदर्शित करने का उल्लेखनीय कार्य किया,वहीं दूसरी ओर ख्याल खेलने वालों ने अमर सिंह के जीवन-मूल्यों का अभिनय बड़ी खूबी से किया |रचनाधर्मियों और कलाकारों के संयुक्त प्रयासों से अमरसिंह जन-जन का हृदय सम्राट बन गया |"
- डा.हुकमसिंह भाटी, वीर शिरोमणि अमरसिंह राठौड़, पृ. १०

अमर सिंह राठौड़ की वीरता सर्वविदित है ये जोधपुर के महाराजा गज सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे जिनका जन्म रानी मनसुख दे की कोख से वि.स.१६७० , १२ दिसम्बर १६१६ को हुआ था | अमर सिंह बचपन से ही बड़े उद्दंड,चंचल,उग्रस्वभाव व अभिमानी थे जिस कारण महाराजा ने इन्हें देश निकाला की आज्ञा दे जोधपुर राज्य के उत्तराधिकार से वंचित कर दिया था| उनकी शिक्षा राजसी वातावरण में होने के फलस्वरूप उनमे उच्चस्तरीय खानदान के सारे गुण विद्यमान थे और उनकी वीरता की कीर्ति चारों और फ़ैल चुकी थी | १९ वर्ष की आयु में ही वे राजस्थान के कई रजा-महाराजाओं की पुत्रियों के साथ विवाह बंधन में बाँध चुके थे |

लाहौर में रहते हुए उनके पिता महाराजा गज सिंह जी ने अमर सिंह को शाही सेना में प्रविष्ट होने के लिए अपने पास बुला लिया अतः वे अपने वीर साथियों के साथ सेना सुसज्जित कर लाहोर पहुंचे | बादशाह शाहजहाँ ने अमर सिंह को ढाई हजारी जात व डेढ़ हजार सवार का मनसब प्रदान किया | अमर सिंह ने शाजहाँ के खिलाफ कई उपद्रवों का सफलता पूर्वक दमन कर कई युधों के अलावा कंधार के सैनिक अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | बादशाह शाहजहाँ अमर सिंह की वीरता से बेहद प्रभावित था |

६ मई १६३८ को अमर सिंह के पिता महाराजा गज सिंह का निधन हो गया उनकी इच्छानुसार उनके छोटे पुत्र जसवंत सिंह को को जोधपुर राज्य की गद्दी पर बैठाया गया | वहीं अमर सिंह को शाहजहाँ ने राव का खिताब देकर नागौर परगने का राज्य प्रदान किया |

हाथी की चराई पर बादशाह की और से कर लगता था जो अमर सिंह ने देने से साफ मना कर दिया था | सलावतखां द्वारा जब इसका तकाजा किया गया और इसी सिलसिले में सलावतखां ने अमर सिंह को कुछ उपशब्द बोलने पर स्वाभिमानी अमर सिंह ने बादशाह शाहजहाँ के सामने ही सलावतखां का वध कर दिया और ख़ुद भी मुग़ल सैनिकों के हाथो लड़ता हुआ आगरे के किले में मारा गया | राव अमर सिंह राठौड़ का पार्थिव शव लाने के उद्येश्य से उनका सहयोगी बल्लू चांपावत ने बादशाह से मिलने की इच्छा प्रकट की,कूटनीतिज्ञ बादशाह ने मिलने की अनुमति दे दी,आगरा किले के दरवाजे एक-एक कर खुले और बल्लू चांपावत के प्रवेश के बाद पुनः बंद होते गए | अन्तिम दरवाजे पर स्वयं बादशाह बल्लू के सामने आया और आदर सत्कार पूर्वक बल्लू से मिला| बल्लू चांपावत ने बादशाह से कहा "बादशाह सलामत जो होना था वो हो गया मै तो अपने स्वामी के अन्तिम दर्शन मात्र कर लेना चाहता हूँ|" और बादशाह में उसे अनुमति दे दी |

इधर राव अमर सिंह के पार्थिव शव को खुले प्रांगण में एक लकड़ी के तख्त पर सैनिक सम्मान के साथ रखकर मुग़ल सैनिक करीब २०-२५ गज की दुरी पर शस्त्र झुकाए खड़े थे | दुर्ग की ऊँची बुर्ज पर शोक सूचक शहनाई बज रही थी | बल्लू चांपावत शोक पूर्ण मुद्रा में धीरे से झुका और पलक झपकते ही अमर सिंह के शव को उठा कर घोडे पर सवार हो ऐड लगा दी और दुर्ग के पट्ठे पर जा चढा और दुसरे क्षण वहां से निचे की और छलांग मार गया मुग़ल सैनिक ये सब देख भौचंके रह गए |

दुर्ग के बाहर प्रतीक्षा में खड़ी ५०० राजपूत योद्धाओं की टुकडी को अमर सिंह का पार्थिव शव सोंप कर बल्लू दुसरे घोडे पर सवार हो दुर्ग के मुख्य द्वार की तरफ रवाना हुआ जहाँ से मुग़ल अस्वारोही अमर सिंह का शव पुनः छिनने के लिए दुर्ग से निकलने वाले थे,बल्लू मुग़ल सैनिकों को रोकने हेतु उनसे बड़ी वीरता के साथ युद्ध करता हुआ मारा गया लेकिन वो मुग़ल सैनिको को रोकने में सफल रहा |

Amar Singh Rathore

Amar Singh Rathore is a historical legendary character whose saga of bravery is sung around Agra region of India. He served Mughals there at Agra for a short period after being denied his right of inheritance at Nagaur in Rajasthan.

Amar Singh Rathore was the heir apparent to the throne of Marwar, who not only was deprived of his right to succession, but was also exiled from the State, where after he retired to the Mughal court of Emperor Shahjahan. His exceptional gallantry on the battle fields impressed the emperor who bestowed upon him the chief ship of Nagaur and elevated him to a very high rank in the nobility. He was the famous fighter who jumped from Agra Fort with his horse.


Rajput Kavita

हम उस राम के वँशज है,,,
जिसने रावण को मारा था..!
हम उस हरिशचँद्र के बेटे है,,,
जिसे सत्य सदा प्यारा था..! |

कँस का जिसने अँत किया,,,
वो कृष्ण भी हमारा है..!
पापियोँ के चक्रव्युह को तोडा,,,
वो अभिमन्यु क्षत्रिय प्यारा था..! |

दुरगादास ने जे धरम निभाया,,,
वो धर्म जग मेँ न्यारा था..!
पापियो का नाश करने मेँ पापियोँ को भी क्षत्रियोँ का सहारा था,,,|

अकबर को ताउमर जिसने भगाया,,,
वो महाराणा भी हमारा है...!
जिस भरत से भारत का नाम हूआ,,,
वो भरत भारत का सितारा है..! 

फिर हम क्षत्रियो को दुनिया ने कयो बिशारा है ?
नतीजा देखॅ आज चारो तरफ पाप का पशारा है..! 

उठो जागो ओर बढो क्षत्रियो आज फिर देश पुकार रहा,,,
पकडो क्षत्रिय पथ को जिसका हम पर बहुत उपकार रहा..!

हनुमान को जब भुला बल याद आया तो लँका जाके सीता जी का पता लगाया,,,
आज हमेँ भी अपने पुराने गौरव को याद करना है इतिहास के पन्नो को फिर हमारे क्षत्रिय रक्त से भरना है..! 

॥  जय राजपुताना  ॥