Friday 28 November 2014

Rajput Poetry

राजपूतों की ऐसी कहानी है , कि राजपूत ही राजपूत कि निशानी है l
हम जब आये तो तुमको एहसास था , कि कोई एक शेर मेरे पास था ll
हम गरम खून के उबाल हैं , प्यासी नदियों की चाल हैं , l
हमारी गर्जना विन्ध्य पर्वतों से टकराती है और हिमालय की चोटी तक जाती है ll
हम थक कर बैठेने वाले रड बांकुर नहीं ठाकुर हैं .... l
गर्व है हमें जिस माँ के पूत हैं , जीतो क्यूंकि हम राजपूत हैं ll
हम मृतयु वरन करने वाले जब जब हथियार उठाते हैं l
तब पानी से नहीं शोनीत से अपनी प्यास बुझाते हैं ll
हम राजपूत वीरो का जब सोया अभिमान जगता हैं l
तब महाकाल भी चरणों पे प्राणों की भीख मांगता हैं ll

शूरबाहूषु लोकोऽयं लम्बते पुत्रवत् सदा ।
तस्मात् सर्वास्ववस्थासु शूरः सम्मानमर्हित।।
न िह शौर्यात् परं िकंचित् ित्रलोकेषु िवधते।
शूरः सर्वं पालयित सर्वं शूरे पर्ितिष्ठतम् ।।



Arms of the brave (kshatriya) always support and sustain the people like (a father his) son.
 A brave (kshatriya) is, for this reason, honoured by all, in all situations.
 There is nothing in all the three worlds, which is beyond (the reach of) bravery.
 Brave (kshatriya) sustains all, and all depend upon the brave.



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