Wednesday 12 November 2014

Rajputana Hindi Poetry

जो शत्रु की छाती चीरे धार अभी वो बाकि है,
सर काटे जो शत्रु का, तलवार अभी वो बाकि है,
कायरता न समझे गीदड़, हम शेरों की ख़ामोशी को,
जो पंजे से शत्रु के पेट को चीरे बघनख अभी वो बाकि है.!!!!   



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