Tuesday, 28 July 2015

Rajputana Poem

"राजपुताना का कर्ज"
जिनकी रगोँ मे दौड रहा है,
लहु अरुण राजपुताना का,
 हिलोरे लेता शौर्य दिलोँ मे,
पराक्रम जिनका महाराणा सा,
थोडा सा अनुरोध है हमारा,
उन क्षत्रिय वीरोँ और विरांगनाओ से,
आओ मिलकर वृण चुकाए श्री राजपुताना का....!
 क्योँ आज हम होते जा रहे है अपने कर्तव्यो से विमुढ?
यह बन गया है एक रहस्य गुढ...!
जिनको दिलो मेँ है जन्मजात राणा सी ज्वाला,
 नही चलता खुद पर ही उन्ही का वश भला...!
 आइए मिलकर विचार करे केईसके क्या है कारण?
 फिर करे ईन सभी का तारण...

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